Rohtash Verma

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लेखनी प्रतियोगिता -27-Nov-2022 # प्रतियोगिता - कहां आ गया हूं।

# प्रतियोगिता 


    कहां आ गया हूं।

सुनसान यह सड़क
ऊपर से कहर धुंध का
ठिठुरता हुआ मैं
चल रहा हूं अकेला
है चारों तरफ...
मतलब ग्रस्त मेला 
भटकता हुआ जहां
न जाने कहां आ गया हूं।
बना बनाया एक ....
महल ढ़हा गया हूं।

वो जो थे साथ मेरे
असल में संग नहीं थे 
उनके लबों पर
हां मेरे रंग नहीं थे
तसल्ली का लिबास
ओढ़ाते थे जरुर 
मगर ठंड से बचाने के
उनके ढ़ंग नहीं थे
फिर भी मैं रख मान
‌सर्द से टकरा गया हूं।
वो ओढ़ कर लिबास
न जाने कहां आ गया हूं।

उनके हाथ शामिल
गैरों में वो मशगूल थे
हम यहां इस हालत में
उड़ती हुई धूल थे
कड़ी धूप में ज़रा सी
छाया कर जाते,
हां ओ! 'मुसाफिर' तुम 
किए गए धोखे के कबूल थे 
कर यकीं अथाह.....
कैसा मुकाम पा गया हूं।
दिखते नहीं सहारे अब
न जाने कहां आ गया हूं।।

रोहताश वर्मा 'मुसाफ़िर'

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6 Comments

Khan

28-Nov-2022 09:41 PM

बेहतरीन 💐👌🌸

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Rohtash Verma

01-Dec-2022 02:50 PM

Thanks ji

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Gunjan Kamal

28-Nov-2022 07:12 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Rohtash Verma

01-Dec-2022 02:50 PM

Thanks very much ji

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Nice 👍🏼

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Rohtash Verma

27-Nov-2022 12:26 PM

Thanks very much sir ji

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